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शादाब आलम की दो बाल कविताएं...

दोस्तों, शादाब आलम बच्चों के लोकप्रिय लेखक हैं. इन दिनों लखनऊ में रहते हैं. इनकी कहानियां और कवितायें बच्चों को खूब भाती हैं. नंदन ,बाल भारती, बालहंस ,जनसत्ता, नन्हे सम्राट, अभिनव बालमन ,नेशनल दुनिया ,बाल भास्कर, साहित्य अमृत ,बाल वाटिका समेत अनेक पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं.
हाँ, एक बात और. लेखन के लिए तुम्हारे शादाब भैया को कई सम्मान और पुरस्कार भी मिले हैं. हाल ही में इन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से सम्मान प्राप्त हुआ है.

 

 

सिल-बट्टा

पत्थर की है काया, हमको
कहते हैं सिल-बट्टा।

बड़े मजे से पीसा करतीं
मम्मी रोज़ मसाला
बनता है फ़िर खाना सचमुच
खूब ज़ायके वाला।
घर आँगन में हो जाती है
खुशबू अहा! इकट्ठा।

धनिया, मिरचा, लहसुन, अदरख
अमियाँ और टमाटर
तरह-तरह की चटनी देतें
हैं हम तुम्हें बनाकर।
इमली की चटनी का 'फ़्लेवर'
कुछ मीठा कुछ खट्टा।

दादी कहतीं- 'हाथों-कंधों
को मज़बूत बनाओ
स्वाद चाहिए भोजन में तो
'मिक्सर' नही चलाओ।
हो जो सेहत-स्वाद तभी है
हँसी-तमाशा, ठठ्ठा।'

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सवाल-जवाब
 
सबसे सुंदर फूल कौन सा?
फूल गुलाब।
सही जवाब।
 
लालक़िला में चूहा दौड़े
हवा महल में नाचे बिल्ली
किन शहरों में हैं ये दोनों?
बिल्ली जयपुर, चूहा दिल्ली।
झटपट उत्तर दिया, किया ना
समय ख़राब।
सही जवाब।
 
एक बार दादी में आता
दादा में खुद को दुहराता
क्या है यह बोलो जल्दी से?
ये है 'आ', जो आम बनाता।
चलती-फिरती लगते हो तुम
मुझे किताब।
सही जवाब।
 
एक कहावत जिसमे होता
मुरगी का अपमान सरासर?
अरे! अरे! हाँ याद आ गया
घर की मुरगी दाल बराबर।
महा पढ़ाकू का मिलता है
तुम्हे खिताब।
सही जवाब।




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